रविवार, 6 जुलाई 2025

अकीदतमंदों के कांधों पर सवार होकर निकले एशिया के सबसे बड़े दुलदुल

शाजापुर। मोहर्रम पर्व जैसे-जैसे अपने समापन की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मुस्लिमजनों के दिलों में हुसैनी जज्बा भी बढ़ता जा रहा है और शहीदों की याद में सबिल लगाने के साथ ही हलीम का लंगर भी लुटाया जा रहा है। वहीं परंपरानुसार एशिया के सबसे बड़े दुलदुल का मोहर्रम की आठ तारीख शुक्रवार को जुलूस निकाला गया। जुलूस देररात करीब 11 बजे मोहर्रम कमेटी के सदर इमरान खरखरे की सरपरस्ती में हुसैनी चौक से शुरू हुआ, जो नगर के सिंधी मार्केट, आजाद चौक, मीरकला बाजार, कसाईवाड़ा, किला रोड होता हुआ पुनः देररात हुसैनी चौक पहुंचकर संपन्न हुआ। उल्लेखनीय है कि मोहर्रम का पर्व इंसानियत के लिए करबला में शहीद हुए रसूले पाक के नवासे और उनके अजीजों की याद में मनाया जाता है। दस दिवसीय इस मातमी पर्व पर मुस्लिमजन शोहदा-ए-करबला को याद कर उनके नाम पर लंगर लुटाते हैं और हर साल की तरह इस साल भी पुरानी परंपराओं के चलते हलीम का लंगर लुटाया जा रहा है। साथ ही दूध और शरबत पिलाकर हजरत इमाम हुसैन को याद किया जा रहा है। साथ ही मोहर्रम की आठ तारीख को परंपरानुसार दुलदुल का जुलूस बड़ी ही धूमधाम के साथ निकाला गया।
जुलूस के पीछे यह है मान्यता
मोहर्रम पर्व पर दुलदुल का जुलूस निकालना शोहदा-ए-करबला के प्रति अपनी मोहब्बत को जाहिर करना है, क्योंकि  मोहर्रम की आठ तारीख को हजरत अब्बास अलमदार अपने घोड़े जिसे अरबी भाषा में दुलदुल कहा जाता है उसके साथ नहरे फराज पर पहुंचे और घोड़े से कहा कि सेहराब होकर पानी पीले, इसके बाद पानी नही मिलना है। हजरत अब्बास अलमदार की इस बात पर घोड़े ने रब के हुक्म से जवाब दिया कि हजरत खेमे में सभी भूखे और प्यासे हैं, ऐसे में यदि मैं पानी पीता हूं तो कयामत के दिन अपने रब को क्या मुंह दिखाऊंगा और घोड़े ने पानी नही पिया। इसके बाद यजीद पलीत के लश्कर ने हजरत अब्बास अलमदार और उनके दुलदुल को तीर मारकर शहीद कर दिया। इंसानियत के लिए लड़ी गई जंग में हजरत के साथ भूखे, प्यासे शहीद हुए इस दुलदुल का मोहर्रम पर्व पर जुलूस निकालकर शहीदों के प्रति मुस्लिम समाज अपनी मोहब्बत जाहिर करता है।
योमें आशूरा आज
मोहर्रम का महीना कर्बला के शहीदों को खिराजे अकीदत पेश करने के लिए होता है। इस्लाम के जानकार सज्जाद अहमद कुरैशी ने बताया कि कर्बला की जंग सत्ता या शासन के लिए नहीं, बल्कि उन इस्लामी सिद्धांतों के लिए थी जो पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने मानवीय शोषण और अमानवीय कृत्यों के खिलाफ कायम किए थे। हजरत इमाम हसन और हजरत इमाम हुसैन ने इस्लामी सिद्धांतों को हक एवं सच्चाई के साथ आगे बढ़ाते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी। इस्लाम शहीदों की शहादत को विशेष सम्मान भाव से देखता है। कुरैशी ने बताया कि मोहर्रम इमाम हुसैन के सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों की हिफाजत की याद दिलाता है। हजरत इमाम हुसैन के चाहने वाले इस्लामी सिद्धांतों के मुताबिक इस त्यौहार को मनाते हैं। आज रविवार को योमे आशूरा रहेगा और इस दिन आशूरा की नमाज अदा की जाएगी।




साजिद हुसैन पत्रकार 
9826553213


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